सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी को विदाई न देने के निर्णय ने पूरे न्यायिक क्षेत्र और आम नागरिकों में गहरी प्रतिक्रिया उत्पन्न की है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने इस निर्णय की आलोचना करते हुए SCBA और SCAORA से अपील की है कि वे परंपरा के अनुरूप विदाई समारोह आयोजित करें।
👩⚖️ न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी कौन हैं?
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सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ न्यायाधीश
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DK गांधी केस में ऐतिहासिक निर्णय — वकीलों को उपभोक्ता कानून के अंतर्गत सेवा में कमी के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
🚫 विदाई से इनकार: मामला क्या है?
🔹 मुख्य बिंदु:
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अंतिम कार्य दिवस: 16 मई 2025
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परंपरा: SCBA और SCAORA द्वारा सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को विदाई दी जाती है
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विवाद: न्यायमूर्ति त्रिवेदी को कोई औपचारिक विदाई नहीं दी गई
📩 BCI की चिट्ठी: “परंपरा और सम्मान बनाए रखें”
BCI ने SCBA अध्यक्ष कपिल सिब्बल और SCAORA अध्यक्ष विपुल नायर को पत्र लिखकर कहा:
“ऐसे न्यायाधीश को विदाई न देना हमारी संस्थागत परंपराओं पर प्रश्नचिह्न लगाता है… उनकी प्रतिष्ठा को नजरअंदाज करना न्याय और निष्पक्षता की भावना को कमज़ोर करता है।”
🗣️ मुख्य न्यायाधीश की नाराज़गी
CJI बी.आर. गवई ने इस फैसले की सार्वजनिक रूप से निंदा की:
“मैं इस निर्णय की आलोचना करता हूँ… ऐसा अवसर होते हुए भी यह निर्णय नहीं लिया जाना चाहिए था।”
📚 DK गांधी केस: एक ऐतिहासिक निर्णय
न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने इस केस में यह स्पष्ट किया कि वकीलों को व्यापारी नहीं समझा जा सकता और वे उपभोक्ता कानून के दायरे में नहीं आते। यह फैसला आज भी कानूनी क्षेत्र में मिसाल बना हुआ है।
न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी को विदाई न देना न केवल परंपरा का उल्लंघन है, बल्कि न्यायपालिका के प्रति सम्मान में कमी को दर्शाता है। BCI और CJI की प्रतिक्रिया यह दर्शाती है कि ऐसी घटनाएं संस्थागत गरिमा को नुकसान पहुँचा सकती हैं। यह मुद्दा हर जागरूक नागरिक के ध्यान में आना चाहिए।